Monday, January 11, 2010

कैसी है ये रुत के जिस में

कैसी है ये रुत के जिस में फूल बनके दिल खिले
घुल रहे हैं रंग सारे घुल रही हैं ख़ःउशबूएं
चाँदनी झरने घटायें गीत बारिश तितलियाँ
हम पे हो गये हैं सब मेहरबान

देखो नदी के किनारे पंछी पुकारे किसी पंछी को
देखो ये जो नदी है मिलने चली है सागर ही को
ये प्यार का ही साअरा है कारवान

कसी है ये रुत के ...

हो, कैसे किसी को बतायें कैसे ये समझायें क्या प्यार है
इस में बंधन नहीं है और ना कोई भी दीवार है
सुनो प्यार की निराली है दास्ताँ

कैसी है ये रुत ...

- जावेद अख्तर

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